Bhartiya Sanskriti Indian Culture in Hindi

नमस्कार दोस्तों , आज के इस (Bhartiya Sanskriti Indian Culture in Hindi) स्पिरिचुअल आर्टिकल में हम बात करेंगे और समझेंगे कि संस्कृति क्या है (What is culture in Hindi) और संस्कृति की मूल भावना क्या होती है उसके बाद हम हम भारतीय संस्कृति (Indian Culture in Hindi ) के बारे में जानेगे और भारतीय संस्कृति विश्व की पहली संस्कृति कु है इस पर भी बात करेंगे

दोस्तों बहुत सारे हमारे आसपास ऐसे लोग भी है जो संस्कृति के बारे में नहीं जानते है और न ही उन्हें ये पता है की भारतीय संस्कृति (Bhartiya Sanskriti) क्या है और कु वो इतनी महान और पवित्र है। कई सरे लोग ये भी कहने से नहीं चुकते की ये सब जान कर करेंगे क्या, सब पुरानी और बेकार की बाते है , पर ऐसा नहीं है ये सब हमारी जिन्दगी से जुड़ा हुवा है। अगर आपको सुकून और उल्लास के साथ जीना है, तो भारतीय संस्कृति को जानना और समझना ही चाहिए ,  चलिए आज का ये आर्टिकल शुरू करते है। संस्कृति के बारे में हम अपने कमेंट कर के अपने विचार और सुझाव जरुर बताये ।

संस्कृति की मूल भावना (Basic Sense of Culture)

कृति जो "संस्कार" संपन्न हो संस्कृति कहलाती है। संस्कृति का मूल अस्तित्व व्यक्ति और समाज के कल्याणकारी तत्व पर आधारित है। अंग्रेजी में संस्कृति का अर्थ बोधक शब्द है "कल्चर" इसका तात्पर्य है सभ्यता रहन - सहन एवम् सोचने - विचारने का तरीका । संस्कृति देश और जाति में पैदा नहीं हो सकती वह मानवी है और सार्वभौम है दुसरे शब्दों उसे मानवी गरिमा के अनुरूप उच्चस्तरीय श्रध्दा, सद्भावना कह सकते है। इसके प्रकाश में मनुष्य परस्पर स्नेह - सौजन्य बन्धनों में बंधते हैं एक दुसरे के निकट आते और समझने का प्रयत्न करते हैं।

संस्कृति सौन्दर्योपना है एक भाव भरी उद्दात्त  दृष्टी रहे तो वन, उपवनों, नदी, तालाबो, प्राणियों, बादलों जैसी सामान्य वस्तुओ को जब सौन्दर्य पारखी दृष्टी से देखा जाता है तो अंतरात्मा में आह्लाद उत्पन्न करती हैं। श्रध्दा के आरोपण से पत्थर में भगवान पैदा होते हैं। सांस्कृतिक चिंतन से हम इस संसार को भगवान का विराट स्वरूप और अपने कलेवर को ईश्वर के मंदिर जैसा पवित्र अनुभव कर सकते है जहा जैसी दृष्टि होगी वहां दूसरों से सद्व्यवहार करने और अपनी उत्कृष्ठता बनाये रखने की ही आकांक्षा बनी रहेगी और उसे जितना कार्यन्वित करना बन पड़ेगा उतना ही अपना और दूसरों का सच्चा हित साधन बन पड़ेगा सुसंस्कृत दृष्टिकोण अपनाकर मनुष्य अपने देवत्व को विकसित करने और वातावरण को सुख शांति से भरा पूरा बनाने में आशाजनक सफलता प्राप्त कर सकता है।

विचारक इलियट ने अपने ग्रन्थ "संस्कृति का पर्यवेक्षण" में लखा है - संस्कृति का स्वरूप मानवी उत्कृष्टता के अनुरूप आचरण करने के लिए विवश करने वाली आस्था है। जिसका अंत: करण इसमें जितनी गहराई तक रंगा हुआ है, वह उतना ही सुसंस्कृत है ।

संस्कृति और धर्म सार्वभौम हैं (Culture and Religion are Universal)

संस्कृति और धर्म दोनों ही सार्वभौम हैं सज्जनता की परिभाषा में मतभेद नहीं है शारीरिक संरचना की तरह मनुष्य के अन्तः करण की मूल सत्ता भी एक ही प्रकार की है भौतिक प्रवित्तिया भी लगभग सभी की एक जैसी ही है एकता ममता समता के गुण व्यापक और शाश्वत हैं अलगाव द्वेष घृणा सामयिक और क्षणिक है हम सब एक ही परमपिता के पुत्र हैं, एक ही धरती पर जन्म लिया है एक ही आकाश के नीचे रहते है एक ही सूर्य से गर्मी प्राप्त करते है और बादलों के अनुदानों से सभी एक ही तरह गुजारा करते हैं फिर अलगाव , प्रथकता, कृत्रिम  विभेद से बहुत दिनों तक किस प्रकार बंधे रह सकते हैं

परस्पर आदान - प्रदान का द्वार जितना खोलकर रखा जाय उतना ही साफ़ हवा और  रोशनी का लाभ सभी को मिलेगा हवा उन्मुक्त आकाश में बहती है सर्दी गर्मी का विस्तार व्यापक क्षेत्र में होता है इन्हें बन्धनों में बांधकर कैदियों की तरह अपने ही घर में रुके रहने के लिए बाधित नहीं किया जा सकता। इन्हें जितना फैलाया जायेगा विश्व बंधुत्व की भावना उतनी ही फैलेगी। संस्कृति और धर्म सबके लिए है सार्वभौम है व्यापक है।

भारतीय संस्कृति विश्व की पहली संस्कृति

यजुर्वेद 7/14 में एक पद आता है " सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा "अर्थात यह प्रथम संस्कृति है जो विश्वव्यापी है। सृष्टि के आरंभ में हो सकता है ऐसी छुटपुट संस्कृतियों संस्कृतियों का उदय हुआ हो जो किसी क्षेत्र या वर्ग विशेष के लिए उपयोगी रही हो परंतु भारतीय संस्कृति एक ऐसी विश्वव्यापी संस्कृति है जो मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने की क्षमता से ओतप्रोत है। ऐसी ऊंची सोच है, विचारणा है जिससे व्यक्ति अपने आप में संतोष और उल्लास भरी अंत: स्थिति पाकर सुख शांति से भरा पूरा जीवन जी सकें। भारतीय संस्कृति वह आदर्शवादी क्रिया पद्धति है जो सामूहिक जीवन में आत्मीयता, उदारता, सेवा, स्नेहभाव, सहिष्णुता और सहकारिता का वातावरण उत्पन्न करती है। इस महान तत्वज्ञान को भारतीय प्रजा चिरकाल तक अपनाती रही और उस के फलस्वरुप यहां के नागरिकों को समस्त संसार में देव पुरुष कहा गया और जिस भूमि में ऐसे महामानव उत्पन्न होते हैं उसे स्वर्ग के नाम से संबोधित किया गया।

यहां की 33 कोटी नागरिकों को विश्व में 33 कोटि देवताओं के नाम से पुकारा जाता था और जब भी भारत भूमि का स्मरण किया जाता था तो उसे सरोवर "स्वर्गादपि गरीयसी" ही कहा जाता था। यहां के निवासी प्रेम सदाचार सुव्यवस्था और समृद्धि का संदेश और मार्गदर्शन लेकर विश्व के कोने कोने में पहुंचे तथा शांति और प्रगति के साधन जुटाने का नेतृत्व करते रहे।भारतीय संस्कृति किसी वर्ग, सम्प्रदाय या देश, जाती संकीर्ण परिधियों में बंधी हुई सांप्रदायिक मान्यता नहीं है ना किसी व्यक्ति विशेष को आधार मानकर उसकी रचना की गई है। सार्वभौम माननीय आदर्शों के अनुरूप उसका सृजन हुआ है। उसे निसंकोच सार्वभौम, सर्वकालीन और शास्वत कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में भारतीय संस्कृति को हम विश्व मानव के सदैव प्रयोग में आ सकने योग्य चिंतन प्रक्रिया एवं कार्य पद्धति भी कह सकते हैं।

भारतीय संस्कृति के इसी स्वरूप के कारण ही उसे भूतकाल में समस्त संसार ने देखा सराहा और स्वीकार किया था। भविष्य में भी जब इस अनैतिक भगदड़ से दुखी होकर मानव जाति को किसी संतुलित दर्शन की आवश्यकता पड़ेगी तो उस आवश्यकता की पूर्ति केवल भारतीय संस्कृति ही कर सकेगी।

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